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कामिनी भाग 14

रात्रि ने गुस्से से कामिनी की ओर देखा और अचानक दोनों सखियां जोर-जोर से एक साथ, हंसने लगी, अब इस मुस्कान के पीछे क्या रहस्य है, वह ये दोनों ही जानती हैं, सुबह होती है, वैसे तो नयी सुबह, सबके जीवन में नई आशाएं और नई उम्मीदें लेकर आती है पर कामिनी के लिए यह सुबह, एक नयी उलझन लेकर आई है, एक दासी दौड़ती हुई, घबराती हुई, कामिनी के कमरे में आई और उसने कामिनी को उठाकर कहा

"तुम्हारी माता, के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही है, मुझे लगता है, कुछ अनर्थ हुआ है"!

कामिनी यह सुनते ही दौड़ती हुई, अपनी मां के कक्ष में पहुंचती है और मां को संभालती है पर उसकी मां अब संसार में नहीं रही, प्रेम में असफलता और अपनी सबसे बड़ी शुभ चिंतक, मां के चले जाने का दुख, कामिनी को गहरे आघात देता है, कामीनी पूरी तरह टूट जाती है और उसकी आंखों के आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे हैं

कामपुर स्त्री प्रधान राज्य है, इसलिए अंतिम संस्कार के सारे संस्कार, यहां की स्त्रियां ही करती है और यहां की परंपरा के अनुसार, सभी स्त्रियां लाल वस्त्र पहनती है, कामिनी अपनी सखियों के साथ मां को कंधा देती है और मुखाग्नी भी देती है

आगे कहानी

कामिनी अपने कमरे में बैठी रो रही है, तभी रात्रि ने आकर कहा

"जो होना था, वह हो गया, तुम्हारी मां की इच्छा थी कि उनके बाद, तुम कानपुर की प्रमुख बनो, दरबार की कुछ प्रमुख स्त्रीया, तुम्हारा विरोध कर रही है, अपनी योग्यता सिद्ध करो और कामपुर पर राज करो

फिर कामिनी उठकर राज दरबार में आती है और कहती है

"मेरी सभी सखियों, हमारे नगर कामपुर को इस जगत का नरक कहा जाता है पर कामुक पुरुषों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है, वह यहां आते हैं, कुछ मूल्य देते हैं और हमारे शरीर को नोच कर चले जाते हैं, हमारे पास सब कुछ है पर सम्मान नहीं है, सब पुरुषों के हृदय में हमारे लिए हवस तो है पर प्रेम नहीं है, हमारे उन कामी  पुरुषों से संबंध तो है पर भावनात्मक संबंध नहीं है, हजारों वर्षों से चली आ रही, इन परंपराओं ने हमें अंधा कर दिया है  इसीलिए हमें अब इस कार्य की आदत हो गई है और हमें इस मार्ग में कोई दोष नजर नहीं आता है"!

"तुम कहना क्या चाहती हो"? "युवराजी जी, क्या तुम्हारे पास इस दलदल से निकलने का कोई मार्ग है"! एक प्रमुख स्त्री ने कहा

"हां, ,,मेरे पास वह उपाय है, जो हम सबको वासना के दलदल से बाहर निकल सकता है, तुम्हें सम्मान का जीवन प्रदान कर सकता है"! कामिनी ने कहा

"क्या है, वह उपाय"? उसी स्त्री ने पूछा

"हमारे राज्य में ब्रह्म ज्ञानी  सामन मुनि आने वाले हैं, मैंने उनसे प्रार्थना की थी कि वह हमें सदमार्ग दिखाएं, उन्होंने मेरी प्रार्थना को स्वीकार किया है और वह जल्द अपने 1000 शिष्यों के साथ, हमारे नगर आने वाले हैं"! कामिनी ने बताया

"सामन मुनि और हमारे नगर में,,,,अरे, ,वह तो स्त्रियों के सायो से भी कोसो दूर रहते हैं तो हम वेश्याओं के नगर में कैसे आएंगे"? "मुझे लगता है, तुमने कोई स्वप्न देखा है"! उसी स्त्री ने कहा

"स्वप्न नहीं, मैंने सत्य देखा है"! कामिनी ने कहा

तभी एक दासी ने आकर कहा

"में समन मुनि की सूचना लेकर आई हूं, अगर युवराजी की आज्ञा हो तो पढ़ कर सुनाउ"!

"आज्ञा है"!कामीनी ने कहा

"मैं सामन मुनि,,,अपने 1000 शिष्यों के साथ परसों कामपुर आ रहा हूं  वहां की जितनी भी स्त्रियों व्यभिचार छोड़कर, सदमार्ग पर आना चाहती है, मैं उनका स्वागत कर  उन्हें दीक्षा दूंगा"!

सभा में यह संदेश सुनकर, सभी स्त्रियां कामिनी की जय जयकार करने लगी

युवराजी  की जय हो, युवरागी की जय हो

"युवराजी की नहीं, रानी की जय कहो"! रात्रि ने कामिनी के समर्थन में कहा

"रानी की जय हो, रानी की जय हो"! सभी ने कहा

"पूरे नगर को फूलों से सजा दो, सभी मार्गों पर फूल बिछा दो और मुझे मुनिवर के साथ आ रहे 1000 शिष्यों के विशेष आतिथ्य के लिए, 1000 सुंदर युवतियां की आवश्यकता है, क्योंकि यह एक ऐतिहासिक घटना है और हमारे जीवन के लिए, हमारे उज्जवल भविष्य के लिए, एक सुनहरा अवसर है, इसीलिए हमसे कोई भूल न हो, हम सभी को मिलजुल कर, सामन मुनि और उनके शिष्यों की मन, धन और तन से सेवा करना है"! कामिनी ने कहा

"हम तुम्हारे साथ हैं, हम तुम्हारे साथ हैं"! सभी ने सहमति जताते हुए एक साथ कहा

आगे कहानी,,, दो दिन बाद

पूरा कामपुर नगर, दुल्हन की तरह सजा दिया गया है  नगर के द्वार पर कामिनी अपनी सखियों के साथ खड़ी, सामन मुनि की प्रतीक्षा कर रही है, तभी रात्रि ने कहा

"तुम क्या करना चाहती हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, तुमने इतना सारा केशो के लिए इत्र क्यों मंगवाया और भोजन में कौन सी औषधि मिलवाई है"? रात्रि ने संदेह से पूछा

"सब कुछ अभी बता दूंगी तो रहस्य का रोमांच खत्म हो जाएगा, थोड़ी प्रतीक्षा करो, सब समझ आ जाएगा"!

तभी सामन मुनि, अपने शिष्यों के साथ आते हैं, कामिनी ने फूलों से सामान मुनि का स्वागत किया और कटाक्ष भरी नजरों से अपने पूर्व प्रेमी, मानक राव को देखा

फिर सभी स्त्रियों ने सामन मुनि और उनके शिष्यों का फूलों से स्वागत किया फिर कामीनी ने आग्रह पूर्वक कहा है

"मुनीवर,,,,आप सच में करुणा निधान है, आपने यहां पधार कर, इस भूमि को पवित्र कर दिया है और हम सभी के जीवन को धन्य कर दिया है, आपसे एक प्रार्थना है, हम सभी दीक्षा प्राप्त करने से पहले, आप सभी को भोजन करा कर पुण्य कमाना चाहती हैं, मैंने सुना है, सच्चे साधक को भोजन कराने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नष्ट हो जाते हैं, हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर हम पर कृपा करो, मुनिवर"!

सामन मुनि ने कुछ देर विचार करने के बाद कहा

"तुमने संन्यास का संकल्प लेते ही, अपने सभी पापों को नष्ट कर लिया है, इसलिए अब तुम दिव्य आत्माओं का भोजन करने में कोई दोष नहीं है, मैं तुम्हारे आग्रह को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करता हूं"!

"आपका कोटि-कोटि धन्यवाद,,,,मुनिवर,,,पधारिये"! कामीनी हाथ जोड़कर कहा

कामिनी ने समान मुनि को उंचे स्थान पर और सभी शिष्यों को नीचे कतारबद्ध पंक्ति में आसन लगाकर बैठाया और कहां

"में भोजन का प्रबंध करती हूं, तब तक आप यहां बैठे"!

"आखिर क्या षड्यंत्र रचा है, कामीनी ने"?

"आखिर कामिनी ने केशो के लिए, इतना अधिक इत्र क्यों मंगवाया"? और भोजन में कौन सी औषधि मिलाई है"?

'आखिर कैसे बनी, कामीनी एक पिशाचिनी"?

जानने के लिए पढ़ते रहिए कामीनी एक अजीब दास्तां

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1 Comments

Gunjan Kamal

16-Nov-2023 10:33 PM

👏👌

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